Hi,
I know most of us have gone through appraisals in the last month. Some of us are happy for the expected increments, some are disappointed, and some are with OK OK increments. Just to start with new plannings, with new aims, new ambitions, Here is one more self motivating poem with just little different view.
It not only motivates us but also talks about our social responsibilities.
This one is from movie Prahar.
हमारी हि मुठ्ठी में आकाश सारा
जब भी खुलेगी चमके गा तारा
कभी ना ढले जो वो ही सितारा
दिशा जिससे पेहचाने संसार सारा॥ धृ ॥
हथेली पर रेखांए है सब अधुरी
किसने लिखी है नहीं जानना है
सुलझाने उनको न आएगा कोई
समझना है उनको ये अपना कर्म है
अपने कर्म से दिखाना है सबको
खुदका पनपना उभरना है खुदको
अंधेरा मिटाए जो नन्हां शरारा
दिशा जिससे पेहचाने संसार सारा॥ १ ॥
हमारे पिछे कोई आए ना आए
हमे हीं तो पहले पहोचना वहां है
जिन पर है चलना नई पिढीऒं को
उन्हीं रास्तों को बनाना हमें है
जो भी साथ आए उन्हें साथ ले ले
अगर ना कोइ साथ दे तो अकेले
सुलगाएगा जो खुदको मिटाने अंधेरा
दिशा जिससे पेहचाने संसार सारा ॥ २॥
जब भी खुलेगी चमके गा तारा
कभी ना ढले जो वो ही सितारा
दिशा जिससे पेहचाने संसार सारा॥ धृ ॥
हथेली पर रेखांए है सब अधुरी
किसने लिखी है नहीं जानना है
सुलझाने उनको न आएगा कोई
समझना है उनको ये अपना कर्म है
अपने कर्म से दिखाना है सबको
खुदका पनपना उभरना है खुदको
अंधेरा मिटाए जो नन्हां शरारा
दिशा जिससे पेहचाने संसार सारा॥ १ ॥
हमारे पिछे कोई आए ना आए
हमे हीं तो पहले पहोचना वहां है
जिन पर है चलना नई पिढीऒं को
उन्हीं रास्तों को बनाना हमें है
जो भी साथ आए उन्हें साथ ले ले
अगर ना कोइ साथ दे तो अकेले
सुलगाएगा जो खुदको मिटाने अंधेरा
दिशा जिससे पेहचाने संसार सारा ॥ २॥
No comments:
Post a Comment